हरि के प्रेम की प्यासी

मैं तो हरि के प्रेम की प्यासी, हरि का प्रेम ही पाऊँगी
इक हरि ही तो बस मेरे अपने, और कहाँ मैं जाऊँगी

नींद मुझे जब घर कर जाए,गोद हरि की सो जाऊँगी
भूख मुझे तो जब लग जाए,हरि का प्रसाद ही पाऊँगी 
गाने को जब मन कर आए, हरि के भजन ही गाऊँगी
नाचने को जब दिल कर आए, रास पे नाचती जाऊँगी
प्यास मुझे जब लग जाए, चरणामृत बनाऊँगी
खेलने को जब दिल कर आए, हरि संग क्रीड़ा कराऊँगी
सुनने को जब दिल कर आए, मुरली की धुन बजाऊँगी

मैं तो हरि के प्रेम की प्यासी, हरि का प्रेम ही पाऊँगी
इक हरि ही तो बस मेरे अपने, और कहाँ मैं जाऊँगी



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