13,11,2022

गीता का सबसे महत्वपूर्ण श्लोक है 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन मां कर्म फल हे तोर घुमाते संघर्ष बक्र मंडी अर्थात कर्म करने पर ही तुम्हारा अधिकार है फल पर कभी नहीं इसलिए तो कर्म कर 
यहां पर कुछ लोग कहते हैं कि फल पर अधिकार नहीं है कर्म पर अधिकार है। लेकिन जब कर्म करेंगे तो फल तो मिलेगा ही। यहां पर फल का त्याग नहीं है फल की इच्छा का त्याग है अर्थात हमें कर्म करते समय किसी भी प्रकार के फल की इच्छा नहीं रखनी है।     
लेकिन 
कर्म तो किसी ना किसी उद्देश्य को सामने रखकर ही किया जाएगा अर्थात कोई कामना होगी, कोई इच्छा होगी तभी 
तो व्यक्ति कर्म में प्रवृत्त होगा और कर्म किए बिना कोई रह नहीं सकता और कामना के बिना कर्म होता नहीं तो सबसे महत्वपूर्ण बात जो मेरी सोच है यह है कि जब तक यह जिम्मेदारी है कामना तो करेगा ही वह चाहेगा कि मैं कोई कर्म करूं तो उसके बदले में मुझे (यह फल )मिले लेकिन उसका यह कर्म क्रिया में कैसे बदलेगा उसका सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उसकी जो कामना ( यह फल  )     है जिसके कारण वह कर्म कर रहा है अपनी वह कामना वह भगवान के कामना में भगवान की इच्छा में मिला दे अगर उसकी कामना पूर्ण होती है तो उसे खुश नहीं होना चाहिए अगर कामना पूर्ण नहीं होती है तो उसे दुखी नहीं होना चाहिए तो सबसे बेहतर बात अगर उसे सुखी दुखी नहीं होना है तो उसे अपनी कामना को भगवान की कामना में मिला देना चाहिए चाहे तो वह कर्म करते हुए ही मिला दे चाहे कर्म करने के बाद मिला दे जब फल मिले उस फल को अर्थात जो भी परिस्थिति आ गई अनुकूल या प्रतिकूल को भगवान की इच्छा समझे कर्म करते हुए ही मैं अपनी कामना को भगवान की कामना में लगा देगा तो वह कर्म क्रिया हो जाएगा और अगर को


 तो कर्म किस तरह करनी चाहिए की उनका कोई फल ना मिले सबसे जरूरी बात यह है कि मनुष्य हर समय कर्म करता ही रहता है वह एक पल भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता तो जब कर्म करेगा तो फिर भी लगेगा

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