भगवान की प्राप्ति तत्काल होती है या अभ्यास से
राम राम जी
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।4.11।।
हे पृथानन्दन ! जो भक्त जिस प्रकार मेरी शरण लेते हैं, मैं उन्हें उसी प्रकार आश्रय देता हूँ; क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकारसे मेरे मार्गका अनुकरण करते हैं।
एक बहुत ही विचार का विषय है कि भगवान की प्राप्ति तत्काल होती है या अभ्यास करने से
किसी किसी ग्रंथ में हम यह देखते हैं कि अभ्यास के द्वारा भगवान की प्राप्ति होती है और किसी किसी ग्रंथ में यह लिखा होता है कि भगवान की प्राप्ति तत्काल होती है य़ह काल का विषय ही नहीं है।
तो इस संशय की निवृत्ति के लिए एक कथा मन में आ रही है।
एक बार नारद मुनि विष्णु लोक जा रहे थे।
रास्ते में उन्हें एक संत मिले जोकि एक पीपल के वृक्ष के नीचे भगवान का भजन कर रहे थे।
जब संत ने नारद मुनि को जाते हुए देखा तो उन्हें प्रणाम किया और उनसे पूछा कि भगवान आप कहां जा रहे हो ?
नारद मुनि ने कहा कि मैं विष्णु लोक में भगवान विष्णु से मिलने जा रहा हूं।
संत ने कहा कि हे प्रभु क्या आप भगवान से मेरा एक प्रशन पूछ सकते हैं?
नारद मुनि ने कहा अवश्य, बताइए आपका प्रश्न क्या है ?
संत ने कहा कि हे मुनीश्वर आप भगवान से यह पूछिए कि मुझे उनके दर्शन कब होंगे ?
नारद मुनि ने कहा कि अवश्य, मैं भगवान से मैं आपका प्रश्न अवश्य कहूंगा।
जब नारद मुनि भगवान विष्णु के लोक में पहुंचे तो उन्होंने संत का प्रश्न भगवान से पूछा ।
भगवान ने कहा कि मैं उस संत को दर्शन अवश्य दूंगा लेकिन उसमें समय लगेगा।
नारद जी ने कहा कि कितना समय लगेगा प्रभु।
भगवान ने कहा कि जिस पीपल के वृक्ष के नीचे वह संत साधना कर रहे हैं उस वृक्ष के जितने पत्ते हैं उतने युग बीत जाने के बाद ही उनको मेरे दर्शन होंगे।
ऐसा सुनकर नारद मुनि वापस चल पड़े ।
नारद मुनि को संत पर बड़ी दया आई कि अभी तो उनको बहुत युगों तक साधना करनी पड़ेगी ।
वापसी में नारदजी उस संत से मिले तो संत ने पूछा कि भगवान विष्णु ने मेरे प्रश्न का क्या जवाब दिया?
नारद मुनि ने बहुत ही सकुचाते हुए कहा कि भगवान ने कहा है कि इस पीपल के वृक्ष के जितने पत्ते हैं उतने युग बीत जाने के बाद आपको उनके दर्शन होंगे।
इतना सुनना ही था कि वह संत खुशी से झूम उठे और बहुत ही भक्तिभावपूर्वक भगवान का भजन करने लगे, नाचने लगे, गाने लगे। उनको किसी की भी सुधि ना रही। उसी समय बिल्कुल उसी समय भगवान वहां प्रगट हो गए।
यह देख कर नारद मुनि बड़े आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने भगवान से कहा कि भगवान, आपने मुझसे झूठ कहा, आपने तो कहा था कि इस पीपल के वृक्ष के जितने पत्ते हैं उतने युग बीत जाने के बाद ही आप इस संत को दर्शन दोगे लेकिन आपने तो अभी दर्शन दे दिए। इसका क्या अभिप्राय है।
भगवान ने कहा नारदजी, य़ह संत जिस भाव से मेरा भजन कर रहे थे उस भाव से अगर यह इस पीपल के जितने पत्ते हैं उतने युगों तक मेरा भजन करते रहते तभी इनको मेरे दर्शन होते। लेकिन जब आपने इनसे मेरी वाणी कहीं कि इनको मेरे दर्शन होंगे तो इनका भजन करने का भाव बदल गया अर्थात यह संत अनन्यभाव से मेरा भजन करने लगे । इनका भजन करने का भाव इतना तीव्र था कि मुझे भी उसी तीव्र गति से आना पड़ा ।
इस प्रकार इस कथा से हमको यह समझना चाहिए कि भगवान की प्राप्ति काल के अधीन नहीं है, भगवान की प्राप्ति तो भाव के अधीन है अगर हमारा भगवान के प्रति अनन्यभाव है तो भगवान की प्राप्ति तत्काल है अन्यथा जिस भाव से हम भगवान का भजन कर रहे हैं उसी भाव के अनुसार हमको भगवान की प्राप्ति होगी। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम कैसे भी भगवान का भजन करें भगवान की प्राप्ति तो हमें होगी ही। हम जितना जितना भजन करेंगे भगवान उतना उतना ही हमारे नजदीक आते जाएंगे। तो हमें हर समय अनन्याभाव से भगवान का भजन करते रहना चाहिए।
राम जी राम
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