कभी चाहा ही नहीं

तुझे भूल जाने की कभी न कोशिशें की
तू याद न आए, दिल ने कभी चाहा ही नही

तू ही बस तू ही धड़कता हैं इस दिल में
दिल ने तेरे सिवा कुछ, कभी चाहा ही नहीं

तुझे भूल जाते तो कब का मर जाते
जिंदगी है तू मेरी, मरने का कभी चाहा ही नही

मेरे दिलो दिमाग में हैं इक तेरी ही तस्वीर
कभी धुंधली हो जाए यह, कभी चाहा ही नही

घर से निकलते ही कदम बढ़ते है
तेरे घर की तरफ़
खत्म हो जाए यह सफ़र, कभी चाहा ही नहीं

'अमन' कहता है कि उससे खूबसूरत कोई नही 
हो भी गर, तो उसको तो, कभी चाहा ही नही

लाखों है दुनिया में खुबसूरत एक से एक
’अमन’ ने उसकी सादगी के सिवा कुछ, कभी चाहा ही नही

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