भगवान की प्राप्ति तत्काल होती है या अभ्यास से
राम राम जी ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्। मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।4.11।। हे पृथानन्दन ! जो भक्त जिस प्रकार मेरी शरण लेते हैं, मैं उन्हें उसी प्रकार आश्रय देता हूँ; क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकारसे मेरे मार्गका अनुकरण करते हैं। एक बहुत ही विचार का विषय है कि भगवान की प्राप्ति तत्काल होती है या अभ्यास करने से किसी किसी ग्रंथ में हम यह देखते हैं कि अभ्यास के द्वारा भगवान की प्राप्ति होती है और किसी किसी ग्रंथ में यह लिखा होता है कि भगवान की प्राप्ति तत्काल होती है य़ह काल का विषय ही नहीं है। तो इस संशय की निवृत्ति के लिए एक कथा मन में आ रही है। एक बार नारद मुनि विष्णु लोक जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक संत मिले जोकि एक पीपल के वृक्ष के नीचे भगवान का भजन कर रहे थे। जब संत ने नारद मुनि को जाते हुए देखा तो उन्हें प्रणाम किया और उनसे पूछा कि भगवान आप कहां जा रहे हो ? नारद मुनि ने कहा कि मैं विष्णु लोक में भगवान विष्णु से मिलने जा रहा हूं। संत ने कहा कि हे प्रभु क्या आप भगवान से मेरा एक प्रशन पूछ सकते हैं? नारद मुनि ने कहा अवश्य, बताइए आपका प्रश्न क्या है